गुजराती सिनेमा : उम्र 60 वर्ष, तासीर, तस्वीर और तारीख
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मैंने जब पहली गुजराती फिल्म देखी तब मेरी उम्र 4-5 वर्ष रही होगी. उपलेटा के सेन्ट्रल सिनेमा में उन दिनों गुजराती फिल्म कभी कभार ही आती थी और एक फिल्म तीन – चार दिनों से ज्यादा नहीं चलती थी. पुरे सप्ताह तो कुछ खुशकिश्मत फिल्म ही चल पाती थी. फिल्म का प्रचार करने करने के लिए हाथगाड़ी पर दोनो तरफ बोर्ड लगाकर, ढोल-ढमाके के साथ पूरे गांव में घुमाए जाते थे. फिल्म के परचे बांटने का काम विनय नाम का एक लड़का करता था. “वेवीशारू” (सगाई) फिल्म के परचे गुलाबी रंग के थे वह मुझे अभी भी याद है. उन्है पढ़ कर ही मैं फिल्म देखने गया था. यह ज़माना 1948, 49 तथा 50 का था. इन दिनों हिंदी फिल्मों के साथ साथ गुजराती फिल्मों की भी काफी धूम थी. उन दिनों में गुजराती की ‘गुण सुंदरी’, ‘गाड़ा नो बेल’, ‘वे विशाल’, ‘ननद भोजाई’, ‘रा’, ‘नवघण’, ‘वारसदार’, ‘मंगलफेरा’, ‘गोरख धंधा’, ‘दीवा दांडी’, ‘गोरा कुम्हार’, ‘मारे ते गामड़े एक बाद आवजो’ तथा ‘तमे थोड़ा वरणागी’ के गीत घर घर गूंज रहे थे. गीता दत्त के आवाज में गुजराती गीत बिल्कुल गुजराती लगते थे. मनहर देसाई और निरूपारॉय की जोड़ी दिलीप कुमार कामिनी कौशल जैसी ही मशहुर थी. बाबू राजे और छगन रोमियो की कॉमेडी देख कर हम हंसते हंसते पेट पकड़ लेते थे. ‘दिवा दांडी’ के गीत ‘तारी आंख नो अफीणी’ सुन कर नशा सा छा जाता था. आशा भोंसले तथा लता मंगेशकर भी गुजराती गीत हिंदी जैसी ही मिठास और अधिकार के साथ गाती थी. आज की तरह उच्च तथा मध्यम वर्ग गुजराती फिल्मों से तब विमुख नहीं था.
कई गुजराती फिल्मों की सूची बड़ी मज़ेदार, विचित्र और रसप्रद है. ‘मोजि लूं मुंबई’ तथा ‘मारी धणियाणि’ के नायक का नाम है अमभालाल. गुजराती फिल्मों के पितामाह द्वारकादास संपत की दो फिल्मों के नाम थे ‘अक्कल ना बरदान’ और 'घर जमाई’, और होमी मास्टर द्वारा बनाई गई कई फिल्में में से नाम की दृश्टि से विशिष्ट थी.
1949 में व्ही.एम. व्यास ने जहां ‘गुणियाल गुजरातण’ बनाई वहीं 1958 में उन्होंने ही ‘भारत नी वाणी’ भी बनाई. इसके आलावा ‘होभल पक्षणी’, ‘सदेवंत सावकिंगा’, ’कुंवर बाई नु मोमेरो’, ’जेसल वोरल’, ’कादु मकराणी’, ‘शेणी विजानंद’, ‘राजा भृतहरि’, ’राजा हरिशचंद’, ’भक्त नरसैयों’ की कहानिया और फिल्में सुपरिचित है. इनमें से कई कहानियां बारंबार परदे पर आई हैं.
सन् 1934 में एक फिल्म संसार लीला आई थी. इसमें खानपान की इज्जत बहू का चित्रण था. यह आदर्श बहू कितने ही विषम परिस्थितियों में मेहनत मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण करती है. आदर्श नारी का यह पात्र गुजराती फिल्मों में सतत आता रहा. संसार के सादे गुण जिस स्त्री में हो गुण सुंदरी कहलाती है. इसिलिए गुण सुंदरी गुजराती सिनेमा की एक प्रतिनिधि फिल्म है. वर्षों बाद गुण सुंदरी नो घर संसार आई लेकिन सरस्वती चंद्र हिंदी में बनी. इसे गुजराती में बनाने का सहास किसी ने क्यों नही किया?
गुजराती फिल्मों में नारी पात्रों के बारे में जो सर्वेक्षण अहमदाबाद की प्रो. इला पाठक, रमा शाह ने किया उसके नतीजे बड़े दिलचस्प रहे. इस सर्वेक्षण के लिए गुजराती की 26 फिल्मों को चुना गया. इनके कुल 49 स्त्री पात्रों में से 36 पात्र गृहणियों के थे. इनमें से अधिकांश गृहणियों को लाचार और असहाय दिखाया था. परदे की हिंदी नारियों की तरह यो गुर्जर नारियां भी पति परायण, पति के पैरों में गिरने वाली, आंसु बहाती पराधीन नारी थी. कुछ लोक कथाओं में जो राजपुतानी का पात्र आता है वो अपवाद स्वरूप ही है. इनके अलावा स्त्री पात्र पर किसी मुसीबत के आते ही वो भजन गाते हुए या भगवान की मुर्ति की ओर दौड़ते हुए दिखते हैं. स्वतंत्र व्यक्तिव का धनी कोई स्त्री पात्र कभी कभी देखने को मिलता है. नारी अपने बल पर शायद ही कभी कोई फैसला कर पाती है. स्त्रियों को बांध रखना या उनसे मार पीट करना गुजराती फिल्मों में सामान्य बात है. पौराणिक कथाओं पर आधारित ये फिल्में बेतुके चमत्कारों से भरपुर होती हैं. 1940 के अर्से के बाद रणजीत कम्पनी ने अछूत फिल्म हिंदी के बाद गुजराती में भी बनाई और दोनों की ही नायिका गोहरबानू थी. गुजराती फिल्मों की पहली उल्लेखनीय अभिनेत्री होने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है. उन्हौने इस वर्ष की कुछ अन्य फिल्मों में भी काम किया था. इस तरह गोहरबानू तथा निरूपारॉय दोनों को ही हम द्विभाषी अभेनित्रीयां कह सकते है. ऐसी अभिनेत्रियां ज्यादा नहीं है, जिनकी खोज तथा विकास गुजराती फिल्मों ने ही किया हो. वैसे गुजराती सिनेमा के प्रारम्भ काल की अधिकांश अभिनेत्रियॉ असल गुजरात की थी और निरूपरॉय इनमें सबसे अधिक प्रभावशाली थी. 1948 में गुण सुंदरी से प्रारंभ होने के बाद उन्हे बरसों गुजराती परदे पर देखा गया. बाद में गुजराती फिल्मों में मंदी का दौर प्रारम्भ होने पर वे क्षेत्रीय से बढ़कर राष्ट्रीय हस्ती बन गई. मंगल फेरा आदि में गरबा करती निरूपा सब के दिलों में बस गई. बीते बरसों में हिन्दी गुजराती फिल्मों में आना जाना करने वाली अभिनेत्रियों में अरूणा ईरानी की नाम महत्वपूर्ण है जिन्हौने असरानी तथा दूसरों के साथ कई फिल्मों में काम किया. वो संजीव कुमार के साथ भी कईं फिल्मों में नायिका बन कर आई. कुछ फिल्मों में जयश्री टी भी मुख्य भुमिका निभाती नज़र आई. काशी नो डीकरो वाली रागिनी भी आदर्श नायिका बन सकती भी लेकिन रंगमंच उनकी पहली पसंद होने के कारण फिल्मों को उनका लाभ नही मिल पाया. मल्लिका साराभाई भी काफी प्रतिभाशाली थी और किरणकुमार के साथ उनकी जोड़ी एक ज़माने में काफी मशहुर पर क्षणिक ही रही. मेंदी रंग लाग्यो में राजेन्द्रकुमार की नायिका उषाकिरण थी. अखंड सौभाग्यवती से आशा पारेख ने भी ज़ोरदार धमाका किया था लेकिन कुलवधू जैसे एक आध-अपवाद को छोड़ वे भी गुजराती चलचित्रों से दूर रही. प्रारम्भिक दौर में जो स्थान निरूपरॉय का थ वहीं 70 के दशक में स्नेहलता का रहा पर वो कर्नाटक की थी. स्नेहलता दिखने में काफी आकर्षक तो थी ही धीरे धीरे उन्होंनें गुजराती भाषा पर भी नियंत्रण पा लिया था. 70 के दशक में कई बाहरी कलाकारों का प्रवेश हुआ. स्नेहलता, असरानी, किरणकुमार के अलावा नसीरूहदीन शाह, स्मिता पाटिल तथा संजीव कुमार जैसे राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों का आगमन हुआ.
गुजराती फिल्मों के 60 वर्ष के इतिहास में दस-बारह फिल्मों के नामोल्लेख के बाद ही पूर्ण विराम या प्रश्नचिन्ह लग जाता है. ‘मां खोंडल तारो चमत्कारो’ तथा ’चंदन चावांकी’ ’मारी हेल उतारो राज’ तथा ‘बहरूपी’ भी है. जिसे पुरस्कार भी मिला लेकिन बिंदु की भुमिका वाली ‘जमाई राज’ अभी भी डिब्बों में ही बंद है. अफसोस की बात है कि हमारे यहां दूसरे समाज की समस्याओं को प्रतिबिंबित करने वाली फिल्में बन ही नही पाती. गुजरात में बेकारी, तंगदिली, सरकारी भ्रष्टाचार, जातिवाद, संप्रदायवाद है तथा स्त्रियों को त्रास भी दिया जाता है. नर्मदा बांधों ने पर्यावरण जैसी समस्याएं भी खड़ी की हैं. इनकी तरफ विधायकों से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी उंगुली उठाते है लेकिन गुजराती फिल्मों में ये सवाल नहीं उठाए जाते. गुजरात के फिल्म निर्माताओं ने क्या शुतुरमुर्गपन अपनाया हुआ है. गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन तथा अन्य आंदोलनों की चर्चा सारे देश में हुई मगर गुजराती फिल्मों ने उनका कोई नोटिस नहीं लिया. हमारे सिनेमा का हमारे सम-सामायिक जीवन के साथ कोई संबंध नहीं है.
This article is a reproduction of the original published in Bharatiya Film Varshiki '92.
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