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Continueआजा मेरे साथी आजा !
हर रात वनकुंजों से दो प्रेमी आत्माओं की दर्दनाक आवाज चांद तारों पर घूमती हुई अम्बावती के राजमहल और नगर सेठ की हवेली पर आ टकराती थी। राजकुमार सदावृक्ष और नगर सेठ की कन्या सारंगा दोनों उस आवाज पर अपना दिल खो बैठे। किन्तु सारंगा को एक दिन पता लग गया कि सदावृक्ष जिस संगीत के सुर पर पागल है। वो मेरी नहीं किसी और की आवाज है। और मैं जिस सुर पर अपना तन मन खो चुकी हूँ वह भी किसी और का संगीत है। जब टूटे हुए हृदय से सारंगा घर लौटी तो उसने देखा कि उसकी सौतली मां ने उसकी सगाई के लिए अपने भाई के साले ज्ञानचंद को बुलाया है। सारंगा के दिल पर पत्थर गिर गया। पूर्णिमा के मेले में सारंगा को हर रात आने वाली वह आवाज फिर सुनाई दी। वृक्षों के बीच से उस मधुर स्वर पर भागती हुई सारंगा समाधियों के पास आते ही राजकुमार सदावृक्ष से टकरा गई। दोनों चैक उठे उसी समय उन समाधियों के बीच से फिर वही मधुर संगीत गूंज उठा। सारंगा सदावृक्ष यह समाधि तुम्हारी ही छः छः जन्मों की समाधि है। तुम दोनों जन्म 2 के प्रेमी हो, सदावृक्ष ने सारंगा को हृदय से लगा लिया। दोनों समझ गये कि उन्हें पुकारने वाली आवाजें उनकी अपनी ही आत्मा की आवाजें थीं ।
सौतली के दबाव से नगर सेठ सारंगा का विवाह ज्ञानचन्द से करने पर मजबूर हो गये। उन्होंने महाराज से वचन ले लिया कि सदावृक्ष सारंगा से नहीं मिलेंगे। सदावृक्ष को जब इस बात का पता लगा तो उसने पिता का विरोध किया मगर महाराज न माने तब राजकुमार ने चीखकर कहा कि जो सारंगा से ब्याह करेगा मैं उसका सर उड़ा दूंगा। घबराकर ज्ञानचंद ने शादी से इन्कार कर दिया। तब सौतेली सारंगा को अपने मैके ले जाकर शादी करने को तैयार हो गई। सारंगा ने कमल के फूल में सदावृक्ष को संदेश भेजा कि वह सदा के लिए उससे बिछड़ रही है। सदावृक्ष साधू का वेश धारण करके रात के समय मार्ग में डेरा डालकर पड़े हुए नगर सेठ के कब्जे से सारंगा को छुडाकर भाग गया। महाराज सदावृक्ष के चले जाने पर पागल से हो गये, उन्होंने उसकी तलाश में चारों ओर आदमी भेज दिये ।
सारंगा और सदावृक्ष आज़ाद पंछियों की तरह वन में रहने लगे। न यहां समाज का बंधन था और न राजा और गरीब का सवाल था। किन्तु वहां भी उन्हें विधाता ने सुख से न रहने दिया। एक दिन जब सदावृक्ष फल लेने गया हुआ था, सारंगा ज्ञानचन्द के हाथों में फंस गई ।
सदावृक्ष पहाड़ों में चारों ओर सारंगा की तलाश में दीवाने की तरह भटकने लगा। एक दिन भटकते भटकते वह उसी गांव में पहुँच गया जहां सारंगा के ब्याह की तैयारी हो रही थी। घोड़े पर दूल्हे के रूप में सजा हुआ ज्ञानचन्द जब बारात के साथ गांव की सड़क से गुज़र रहा था तो लोगों ने सड़क के किनारे फटे कपड़ों में पड़े हुए सदावृक्ष को सारंगा, सारंगा पुकारते हुए देखा। सारंगा को पता लग गया कि उसका प्रियतम उसके लिए तड़पता हुआ पहुंचा है। और उसे पुकार रहा है। वो सदावृक्ष 2 करती हुई शादी का मंडप तोड़कर भाग निकली। सारंगा ने सड़क पर गिरे हुए सदावृक्ष को उठाकर गले लगा लिया। उसी समय सदावृक्ष की तलाश में निकला सेनापति वहां आ पहुंचा, उसने कहा राजकुमार आप इस हालत में, राज महल में चलिए। सदावृक्ष ने कहा, “मैं राजकुमार नहीं, मैं तो प्रेम का भिक्षुक हूँ, सारंगा के बिना मुझे राजमहल तो क्या स्वर्ग भी नहीं चाहिये”, सेनापति की आँखें भर आईं। उन्होंने वचन दिया कि हम महाराज को समझायेंगे और सारंगा को भी ले गये।
राजमहल में पहुँचते ही जब महाराज ने सारंगा के लिए साफ इन्कार कर दिया तो सारंगा ने झोली फैलाते हुए कहा, “महाराज हमारा प्रेम अमर प्रेम है” महाराज की आंखें आंसुओं से भर आई, उसने सारंगा से कहा मैं जानता हूँ सारंगा लेकिन अब मेरे वचन की लाज तेरे हाथ है। आपके वचन की विजय होगी, कहकर सारंगा चल पड़ी। और तलवार लेकर सदावृक्ष बाप के सामने आ गया। महाराज ने कहा पाब के हृदय को चीर कर चले जाओ बेटे, राजकुमार के हाथ से तलवार गिर गई, उसे राजमहल की चार दिवारों में नजर कैद कर दिया गया। फिर शहनाई बज उठी, सारंगा ने अब अपनी मां की तस्वीर से फरियाद चाही। बेटी के विलाप ने बाप के दिल को परेशान कर दिया।
उसने शादी रोक ली किन्तु गांव के पंचों को ज्ञानचन्द कहने लगा कि यदि यह शादी नहीं हुई तो कल तुम पर भी, तुम्हारे बच्चों पर भी यही गुजरेगा। पंचों ने नगर सेठ के शादी करने को मजबूर कर दिया। और सारंगा समाज की वेदी पर अपना बलिदान देने को तैयार हो गई। उसने जहर खा लिया। सदावृक्ष ने महल के पत्थरों पर सर पटक दिया। जब सारंगा की अर्थी श्मशान की ओर चल पड़ी, उस समय बादल गरज उठे, बिजलियां चमक उठी, महल की दीवारें टूट गईं। सदावृक्ष भयंकर तूफान में सारंगा 2 करता हुआ उसी छः छः जन्म की समाधि के पास पहुँच गया। जहां की सारंगा का शरीर चिता के ढेर पर पड़ा था। सदावृक्ष ने सारंगा के पास पहुँचकर कहा, “मेरी छः छः जन्मों की प्रियतमा तू मुझे अकेला छोड़कर नहीं जा सकती।”
ना जा मेरे साथी ना जा.......
(From the official press booklet)