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Sati Naag Kanya (1983)

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सती नागकन्या रामायण का वो स्वर्ण पृष्ठ है जो कभी भुलाया नहीं जा सकता। सती नागकन्या अर्थात सती सुलोचना रामायण का वो स्वर्ण पृष्ठ है जो कभी भुलाया नहीं जा सकता। सती सुलोचना के जीवन में अनुसूया, मन्दोदरी जैसी महान सतीयाँ आई जिनके सतित्त्व के प्रकाश ने उसे महान बना दिया। सुलोचना के जीवन चरित्र से हर नारी को पतिवृत धर्म की शिक्षा तथा कर्तव्य का ज्ञान मिलता है। वो सदा यही संदेश देता है। पति की सेवा के साथ साथ बड़ों का आदर करो, पति को परमेश्वर मान सर्व शक्ति मान परमेश्वर की भी पूजा करो नागकन्या सुलोचना शेषनाग की पुत्री थी। बचपन से ही वो भगवान विष्णु की आराधना करती थी। एक दिन वो पूजा करने के लिए मंदिर जा रही थी कि उस पर देवराज इन्द्र की दृष्टि पड़ी। इन्द्र उसे उठाकर देवलोक ले जाना चाहता था। उसकी पुकार सुनकर रावण पुत्र मेघनाद वहां जा पहुंचा। दोनों में युद्ध हुआ। अन्त में इन्द्र ने उसे उठाकर फेंक दिया।

मेघनाद पिता के चरणों में जाकर पड़ा। पुत्र के मुंह से सब बाते जानकर रावण ने उसे इन्द्र को हराने तथा ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के लिए कहा। मेघनाद ने ब्रह्मा को प्रसन्न कर अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मदेव ने वरदान तो दिया, साथ साथ उसे चेतावनी भी दी जो चैदह वर्ष तक सोए नहीं, स्त्री के होते ब्रह्मचारी रहे ऐसे वीर से तुम्हारी मृत्यु होगी।

वरदान पाकर मेघनाद नागलोक पहुंचा जहां उसने नागकन्या सुलोचना के स्वयंवर की शर्त पूरी की। सुलोचना ने प्रसन्न होकर उसे वरमाला पहनाई। वहां उपस्थित इन्द्र ने उसे ललकारा किन्तु इस बार के युद्ध में उसकी पराजय हुई। मेघनाद इन्द्र को जीत कर लंका पहुंचा।

लंका में रहकर भी सुलोचना अपने आराध्य देव विष्णु की सेवा करती रही। किन्तु प्रभुलिला से मेघनाद यही समझता था वो मेरी पूजा करती है। एक दिन उसने सुलोचना के त्याग और स्नेह से प्रभावित होकर देवताओं को मुक्त कर दिया। यह जानकर रावण क्रोधित हो उठा। बाद में मेघनाद को भी मालूम पड़ गया, सुलोचना उसकी नहीं विष्णु की पूजा करती है। उसके मन में प्रेम की जगह घृणा और क्रोध की आग जल उठी। हरीभक्तों के साथ साथ नागकन्या भी बन्दी गृह में डाल दी गई। प्रभु भक्ति छोड़ने के लिए उस पर तरह तरह के अत्याचार होने लगे।

जगत कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया। अनेक लिलाएं करते हुए राम सीता और लक्ष्मण के साथ पंचवटी पहुंचे। समय पाकर छल से लंकापति ने सीता हरण किया। यह समाचार जानकर सुलोचना का हृदय दुःख से रो उठा। सीता की मुक्ति और दानवों के नाश के लिए राम ने वानरों की विशाल सेना लेकर लंका पर आक्रमण किया।

लंका की धरती पर मेघनाद-लक्ष्मण का भयानक संग्राम छिड़ गया। सती नागकन्या का सतित्व पति की सहायता कर रहा था। अवसर पाकर मेघनाद ने अमोध शक्ति से लक्ष्मण को मूच्र्छित कर दिया। राम के हर संकट में काम आते संकट मोचन हनुमान ने संजिवनी लाकर लक्ष्मण को नया जीवन दिया। यह जानकर मेघनाद चैंका। बह्मदेव ने बताया लक्ष्मण ही तेरा काल है। लंकापति रावण की आज्ञा से अजय होने के लिये दिव्य रथ पाने की इच्छा लेकर उसने महायज्ञ आरम्भ किया।

क्या मेघनाद का यज्ञ पूर्ण हुआ? लक्ष्मण ने मेघनाद का किस तरह वध किया? सती नागकन्या ने कैसे कैसे अपने सुहाग की रक्षा की? इन सब आश्र्चयजनक, रहस्यमय, भक्तिपूर्ण घटनाओं को जानने के लिए आप 'युनिटी एन्टरप्राईजेस' की महान पौराणिक कृति "सति नागकन्या" सपरिवार अवश्य देखिए।

(From the official press booklet)

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