सोनू मांझी के जीवन का सबसे बड़ा सपना है कि उसकी अपनी नैया बहुत ही सुंदर और भव्य हो!
भयंकर वर्षा से नदी में बाढ़ आ जाती है। सोनू पानी में बहती एक लड़की की जान बचाता है। वो सोनू की सेवा श्रुषा से स्वस्थ हो जाती है। तब पता चलता है कि वह निकट के गांव की अनाथ गीता है जो अपने मामा के साथ रहा करती थी।
सेनू गीता को मामा के यहां छोड़ने जाता है तो वह गीता को अपने घर में स्वीकार करने से इंकार कर देता है।
अब सोनू विवश होकर गीता को अपने यहां लाता है, तो उसकी सहृदय माँ लक्ष्मी की तरह गीता का स्वागत करती है।
उसी गांव में रईस विधुर पन्नालाल के जो अपनी वासना की प्यास बुझाने के लिये गीता के साथ छेड़छाड़ करता है।
उन्हीं दिनों सोनू की मां बीमार पड़ती है और अंतिम सांस पूरे करते हुए गीता को अपने घर की बहू बनाने की इच्छा प्रकट करती है।
मां की मौत के बाद सोनू के जीवन में समस्यऐं अपना सर उठाती हैं। पन्नालाल गीता के अकेलेपन का फ़ायदा उठाकर एक बार फिर उसकी ओर बढ़ना चाहता है तो सोनू बहुत बुरी तरह पन्नालाल को नीचा दिखाता है।
लेकिन उस घटना के बाद से सोनू का प्रयास है कि जल्दी से कहीं गीता की शादी हो जाये।
पन्नालाल सोनू से अपने अपमान का बदला लेने के लिये एक गहरी चाल चलता है। वह गांव में पंचायत बुलवाता है और मुखिया के उल्टे सीधे कान भरकर यह फैसला करवा देता है, सोनू हमेशा के लिये गीता को अकेला छोड़कर गांव से चला जायेगा।
सोनू अपने ख़िलाफ पंचायत का फ़ैसला सुनकर पड़प उठता है और गीता को अपने साथ गांव ले जाना चाहता है। लेकिन गीता, सोनू के साथ जाने से इंकार कर देती है।
लेकिन यह सुझाव साकार नहीं होता। उन्हीं दिनों गांव में बहुत ज़ोरों का हैज़ा फैलता है और एक सरकारी डाक्टर का आगमन होता है। डाक्टर रोगियों का इलाज करते हुए सोनू के अलावा और किसी की सहयता नहीं लेता। सोनू डाक्टर के सद्व्यवहार से प्रभावित होकर यह महसूस करने लगता है कि गीता डाक्टर जीवन संगिनी बनकर सुखी रह सकती है।
डाक्टर अपने घर जाते हुए सोनू को आश्वासन देता है कि वह गीता से विवाह रचाने गांव लौटकर वापस आयेगा।
लेकिन उमंगों से भरा डाक्टर जब गांव लौट रहा होता हैं तो एक दुर्घटना में उसकी मौत हो जाती है। यह दुःख सोनू को कुछ तरह पागलसा बना देता है कि गीता उसके प्रति अपने हृदय में छुपे प्यार को प्रगत नहीं कर पाती।
उधर गाँव में सोनू के खिलाफ़ उठी हुई आंधी शांत होने लगती है। पंचायत यह फ़ैसला देती है कि अगर गीता गांव में अकेली नहीं रह सकती तो वह सोनू के साथ गांव से जा सकती है।
पन्नालाल अपनी हार से ख़ीज उठता है और सोनू की नवनिर्मित सुंदर और भव्य नाव को आग लगा देता है जो कि सोनू का सपना है।
सोनू शारीरिक और मानसिक रूप से बिलकुल टूट चुका है तभी एक बार फिर वैसी ही भयंकर वर्षा और बाढ़ आती है। गीता को महसूस होने लगता है कि वह स्वयं सारे दुःख और विपत्ति की जड़ है। गीता उस बाढ़ में बहकर दूर चली जाना चाहती है। लेकिन ऐन मौक़े पर सोनू वहाँ पहुँच जाता है और एक बार फिर अपनी प्रिया गीता को बचा लेता है।
(From the official press booklet)