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मनुष्य विधाता के हाथ का खिलौना है- एक दिन “होनी” को मजाक सूझा- ठाकुर प्रतापसिंह अपनी इकलौती बेटी सरला को बटकेश्वर के मेले में खो बैठे। मां नें इस गमनाक खबर को सुना तो उसका दिल बैठा गया-जबरदस्त सदमा था, सेहत दिन ब दिन गिरती गई; और आठ साल के बाद रज्जन का जन्म उसके लिये मौत का पैग़ाम बनकर आया वह इस दुनिया से चल बसी।
सरला तकदीर की ठोकरें खाती एक वनिताश्रम में पहुंच गई-वक्त गुजरता गया और वह फिकरमन्द यतीम गून्चा, अब अठारेह साल का खूबसूरत फल था। आश्रम के मनेजर ने सरला की शादी....... दी, सरला को लगा जैसे उसकी जिन्दगी का सौदा हो रहा था। शादी की मुकर्रर रात को वह आश्रम से फरार हो गई, आश्रमवालों ने उसका पीछा किया। सरला भागती हुई एक टूटे फूटे मकान में दाखिल हुई, जहाँ एक नवजवान ताश के पन्नें उलट पुलट रहा था। नौजवान ने हैरान होकर सरला को आने का कारण पूछा। दरवाजा जोर से खटखटाया जा रहा था-नौजवान समझ गया, और मौके की नजाकत की यह कह कर टाल दिया कि सरला उसकी बीवी थी। विनोद मुसीबत में पड़ गया-वह बेकार था-परन्तु भगवान ने उसकी फ़रियाद सुन ली-ठाकुर प्रतापसिंह के यहां से बुलावा आ गया। विनोद ने अपनी एवज में वीणा को भेजा। ठाकुर साहब का सेकरेटरी जैकिसन जरा दिलफेक आदमी था-रज्जन को तालीम देने के लिये वीणा मामूर कर दी गई।.................
(From the official press booklet)