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नई शैली निराला संगीत - R D Burman

25 Jun, 2025 | Archival Reproductions by Cinemaazi

नये संगीत निर्देशकों में राहुल देव बर्मन पिछले तीन चार वर्षों से काफी चर्चित रहे हैं। इस चर्चा का कारण यह नहीं है कि वे प्रसिद्ध संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन के पुत्र हैं, बल्कि उन्हेंने अब तक जितनी भी फिल्मों में संगीत दिया है, वह लीक से हट कर है। राहुल की संगीत शैली सदैव अपने पिता की शैली से अलग रही है, साथ ही अन्य बड़े-बड़े संगीत निर्देशकों के प्रभाव से भी वह मुक्त रही है। वाद्यवृंदों के चयन में और उनका मिला-जुला प्रभावशाली प्रयोग करने में राहुल के संगीत संबंधी असाधारण ज्ञान का पता लगता है।

यूँ पहली बार आप राहुल का संगीत सुनें तो महसूस होगा भले ही वह अपने पिता से प्रभावित नहीं हुए हैं, मगर पाश्चात्य संगीन शैली उन पर हाबी है। पाश्चात्य शैली से प्रभावित होने की बात से राहुल को भी इनकार नहीं है, मगर इस शैली में बनाये गये उनके गीतों में प्रयोग शीलता की भी झलक साफ-साफ दिखायी देती है। ’तीसरी मंजिल’ (1966), ’पड़ोसन’  (1968), ’द ट्रेन’ (1970), ’प्यार का मौसम’ (1969), ’अभिलाषा’ (1968), आदि फिल्मों के संगीत में जहाँ एक निरालापन है वहाँ लोक संगीत के प्रति भी राहुल की गहरी रुची का परिचय मिलता है। स्वरों को विचित्रता के साथ उठाना गिराना और उनमें कंपन पैदा करना राहुल के संगीत की विशेषता है, इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण फिल्म ’तीसरी मंजील’ का गीत ’आजा आजा’ है।

मनमौजी संगीतकार
बचपन से ही राहुल को संगीत का वातावरण मिला है। बड़े होने पर पिता के सहायक के रूप में काम करने लगे। इस दौरान काफी कुछ सीखने का मौका मिला। हास्य अभिनेता महमूद से गहरी दोस्ती थी, जिसका परिणाम यह निकला कि उनकी फिल्म ’भूत बंगला’ (1965) में संगीत निर्देशन के साथ-साथ कमेडियन की भूमिका करने की शर्त भी निभानी पड़ी। इस फिल्म में बतौर कमेडियन उन्होंने क्या किया इसका जिक्र करना यहाँ बेकार है, मगर इतना जरूर कहना पड़ेगा कि जब इस फिल्म का गीत ’आओ ट्विस्ट करें’ बजने लगा तो काफी समय तक बजता ही रहा।

व्यक्तिगत जीवन में राहुल बड़े मनमौजी किस्म के युवक है। बोलते कम हैं काम ज्यादा करते हैं। रेकार्डिंग रूम में होंगे तो देखिये क्या तमाशा करते हैं? साजिंदों को बुरी तरह डाँटते नजर आयेंगे मगर कुछ ही पलों में जिस जिसको डाँटा उस उससे माफी माँगते और गले लगाते दिखायी देंगे।

शौक राहुल को एक ही है- नये से नये ढँग से सुरों का प्रयोग? विचित्र से विचित्र संगीत की सर्जना।


This article was published in 'Madhuri' magazine's  15 May 1970 edition (pg 36).
The image is extracted from the article.

 

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