“..लेकिन तेरा नाम ओ ’चेतक’, लोग भूल न पाएंगे;
तेरी समाधि वफा का मन्दिर, देव फूल बरसाएंगे।..
वफ़ा के नाम पर मिट जानेवाले इस बहादुर घोड़े ने अपने जीवन का बलिदान देकर केवल अपने आपको ही नहीं, बल्कि अपने मालिक ’महाराण प्रताप’ और ’मेवाड़’ को भी हमेशाके लिए जीवंत कर दिया।
दुनिया प्रताप को त्याग का देवता न कहती और प्रताप दुनिया को कर्तव्य और मर्यादा के पालन का मार्ग न दिखा सकता अगर चेतक हलदी घाट के युद्ध में उसकी जान न बचाता।
चेतक ने रणभूमि में गरजती हुई तापों के बीच किस तरह अपने मालिक की जान बचाई?
वीर राजपूतानी महाराणी लक्ष्मी ने किस तरह कर्तव्य से डगमगाते हुए अपने पतिको साहसहीन होने से बचा लिया?
प्रताप ने जंगलों और पहाड़ों में भटकते हुए किस तरह अपने कर्तव्य और मर्यादा का पालन किया?
यह सब दिल को हिला देने वाली हक़िक़तें फ़िल्म “चेतक और राणा प्रताप” में देखिये।
जय चेतक !!
जय राणा प्रताप !!!