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Sudhar (1949)

  • LanguageHindi
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प्रगतिशील विचारों का निर्माण उन्नति और दिमाग़ी आज़ादी के आधार पर किया गया है, ताकि हर एक व्यक्ति उसका लाभ उठा सके, हर इन्सान अपनी भलाइ और सुधार का साधन ख़ोजता है। हो सकता है कि ऐसे विचार व्यक्तिगत रूप में सही हों किन्तु वे समाज के प्रति तभी सही और सच्चे माने जाते हैं जबकि वे समय और परिवर्तन की कसौटी पर सच्चे साबित हों। ठाकुर रूपसिंग बम्बई के उन धनी लोगों में से थे जिनहोंने जिन्दगी का असली अनुभव प्राप्त कर धन इकट्ठा किया था। उनका लड़का बसन्त एक पढ़ा लिखा भावुक व लहरी जीव था। देश भक्ति उसमें काफ़ी मात्रा में थी तथा वह देश सेवाएक नेता के रूप में करना चाहता था। रूपसिंह का भतीजा मोहन पश्चीमी सभ्यता का पुजारी था। उसका कहना था कि सत्ता के बिना सुधार और उन्नति का होना नामुमकिन है, मोहन की मंगेतर रागिनी का अटल विश्वास था कि समाज का सुधार एक सच्चा सेवक बनकर ही किया जा सकता है अन्यथा नहीं। विचारों का मतभेद ही इन तीनों के जीवन में एक उलझन थी हालांकि मकसद एक था। मोहन को तो सरकारी नौकरी मिल गई। मोहसीन के सहयोग से रागिनी ने सूरजगढ़ को सुधार का पहला केन्द्र बनाया। बसन्त ने अपने सेक्रेटरी सोमू से मशाविस किया और किशनगढ़ में ही सुधार का श्री गणेश करने की ठानी। आग्रह के बोज से विवश हो रूपसिंह को आज्ञा देनी पड़ी आधुनिक सभ्यता की सामग्री एकठित करके बसन्त किशनगढ़ को नई बम्बई बनाने का स्वप्न लेकर सोमू के साथ चल पड़ा।

बम्बई की चीजे़ पाकर गांव वाले खुश हुए किन्तु चीजों का इस्तेमाल न जानने की वजह नतीजा वहीं हुआ जो कि बन्दर के हाथ में खिलौना पड़ जाने से होता है। उधर जवानी ने अपना रंग दिखाया। बसन्त की आँखें गोपाल चैधरी की बहिन मुनियां से चार हुईं जो प्रेम के रूप में परणित हुई। सोमू ने भी मुनियां की सहेली किनारी के साथ अपने छोटे सरकार का अनुकरण किया गांव का छैला बंसी भला कब यह देख सकता था कि उसकी चहेली से कोई गैर नजरें चार करे। गांव के टेढे़ मेढ़े मकानात गिराने के प्रस्ताव का विरोध करने की आह में उसने तमाम गांव को भडकाना शुरू किया। गांव वालों ने खुली तौर पर बसन्त का विरोध करने की ठानी। बसन्त ने मोहन को बुलवा भेजा ताकि वक्त आने पर सत्ता से काम लिया जाय। रागिनी भी खबर पाते ही मोहसीन के साथ किशनगढ़ आ पहुँची और उन्होंने गांववालों का साथ दिया। एक और निहथ्था गाँव सीना खोले रागिनी और मोसीन के साथ सामना कर रहा था और दूसरी तरफ मोहन बसंत के साथ अपनी भरी बन्दूक ताने बढ़ रहा था। समस्या सोचनीय थी। रूपसिंह मौके पर पहुँच कर हालत पर काबू पा लेता है। सेवा सत्ता और नेतृत्व में किसने विजय पाई इसका एक जवाब कहानी चित्रण से विदित होगा।

(From the official press booklet)