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Continueशामू (राजू) ने जिस घराने में आंख खोली वह शराबियों का घराना था। बदकारी और बदचलनी उसकी घुट्टी में पड़ी थी। ऐसे गन्दे वातावरण में एक निर्दोष बालक का बिगड़ना निश्चय था। किन्तु देवी स्वरुपा उसकी मां (सुलोचना चैटर्जी) ने निश्चय कर लिया कि वह अपने पुत्र को अच्छा आदमी बनायेगी। नूर मुहम्मद तांगेवाले (शिवराज) ने जो तीन पीढ़ियों से इस खान्दान की सेवायें करता आ रहा था अपनी हिन्दू बहिन की शुभेच्छाओं पर विश्वास के फूल अर्पण किये। शामू का पिता (ब्रह्मदत्त) एक दुर्घटना का शिकार हो गया। शामू नूरी चाचा के आश्रय में पालित-पोषित होने लगा। वह निर्मल और अनुपम चरित्रवान युवक (मनोज) निकला। उसकी सहपाठिनी, नाजो श्रद्धा में पली हुई अमीर घराने की लड़की, रेखा (शकीला) उस पर तन-मन से आसक्त हो गई, किन्तु शामू को उसके और अपने बीच एक दीवार दिखाई दी। चांदी की दीवार, छोटे बड़े की दीवार....। इन्हीं दिनों नूर मुहम्मद दुर्घटना का शिकार होकर अपाहिज हो गया। शामू को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। रेखा ने बीच में पड़ने की कोशिश की किन्तु स्वाभिमानी शामू को यह स्वीकृत नहीं हुआ। रेखा को ठेस पहुंची। उसने निश्चय कर लिया कि वह शामू से कभी नहीं मिलेगी। शामू आसाम चला गया। उसे वहां नौकरी मिल गई। इन्हीं दिनों रेखा के बचपन का साथी उसका मंगेतर दीपक (कमल कपूर) अपनी पढ़ाई समाप्त करके इंगलैंड से भारत आ गया।
और आते ही रेखा को साथ लेकर आसाम चला गया। रेखा और शामू मिले। दीपक को देखकर उसे ऐसा लगा जैसे कोई लुटेरा उसका धन लूट रहा हो। शीघ्र ही यह भेद खुल गया कि दीपक उसका भावी पति है। और रेखा उसके बड़े मालिक ठाकुर करणसिंह (के.एन. सिंह) की लाडली पुत्री है। रेखा जो चाहती थी वह उसे मिल गया। वह दीपक के साथ आसाम इसीलिये आई थी कि वह शामू के मन में ईष्र्याग्नि प्रज्वलित करके उसे सदा के लिये अपना बना ले। चाल ठीक बैठी। दीपक दोनों के प्रेम को देखकर जड़वत हो गया। करणसिंह उसके पिता का कर्जदार था। उसने करणसिंह को झूका दिया। रेखा को पिता की इज़्ज़त के लिये अपनी मनोभावनाओं को गला घोंटना पड़ा। शामू एक भीषण दुर्घटना का शिकार हो गया। उसके बचने की कोई आशा नहीं थी। उधर दीपक बारात लिये रेखा के घर आ रहा था। रेखा को शामू के दुर्घटना का समाचार मिला। वह दुल्हन के भेष में ही पागलों की भांति अपने प्रेमी के अन्तिम दर्शनों के लिये घर से निकली। दीपक ने अपनी पिस्तौल की गोलियों से प्यार के तूफ़ान को रोकने की कोशिश की। करणसिंह के भीतर सोया हुआ मानव जाग उठा। उसने बेटी के प्रेम को बेचने की अपेक्षा अपनी जान दे देना स्वीकार किया। शामू अन्तिम सांस ले रहा था। डाक्टर जवाब दे चुके थे। किन्तु नूर मुहम्मद उस समय संसार के सबसे बड़े डाक्टर से अपने बेटे का जीवनदान मांगकर ले आया।
क्या शामू और रेखा मिले? दीपक का क्या हुआ? यह "रेशमी रूमाल" में देखिये।
(From the official press booklet)