indian cinema heritage foundation

Chakra Dhari (1954)

  • LanguageHindi
Share
453 views

भक्त-भक्ति और भगवान ने जगत की धर्म भावना की सजीवन रख आदिकाल से मनुष्य की टूटती श्रद्धा को टिका रखा है। आज वे भक्त तो नहीं रहे पर उनकी भक्ति अब भी जगत को जीवन का राह बताती है।
भक्ति और भोगविलास, दो परस्पर विरोधी तत्वों के बीच खिंचते हुये गोरा कुंभार ने भक्ति का ही पल्ला पकड़ा और प्रभू के पीछे पागल हो गया।
घटना यों घटी कि गोरा किसी चन्दा जो उसे प्राणों से भी प्यारी थी एक दिन उससे दूर होकर मायके गई, पुत्र को जन्म दिया, जिसे सुन गोरा से न रह गया वह ससुराल भागा चन्दा को मिलने पर वहाँ मिले उसे भगवान चक्रधारी, फिर क्या था? उसका जीवन ही बदल गया, ये देख उसकी काफी जल उठी और उन दोनों को पुत्र समेत कलंक लगा कर घर से बहार कर दिया। 
पर गाँव के मुखिया ने गोरा को रहने के लिये अपना घर दिया क्यों कि चन्दा उसके हृदय में घर कर गई थी। लेकिन उसका नया घर उसे न फला, एक दिन भजन की धुन में भान भूले हुये गोरा ने अपने प्यारे पुत्र को भी मिट्टी में सिट्टी के साथ ही रोंद डाला।
इससे चन्दा का हृदय डबल पड़ा-उसे भगवान भयंकर दिखा-मूर्ति फेंसना चाहा, गोराने रोका वह न सकी, गोराने कुल्हाडा़ उठाया, उसने शपथ दी, “मुझे स्पर्श करो तो तुम्हें चक्रधारी की सौगन्द है” गोरा के हृदय में ध्वनी गूँगी “भला हुआ छूटा जंजाल सुख से भजूंगा श्री गोपाल”।
चन्दा का पुत्र मरा पर ममता न मरी, अतः अपनी छोटी बहन रूपा का गोरा के साथ व्याह कराया पुत्र प्राप्ति की आशा से पर भगवान को कुछ दूसरा ही मंजूर था।
रूपा की विदाई के समय रूपा के पिता ने कहा “जिस तरह बड़ी को रखते आये हो वैसे ही छोटी को भी न समझो तो तुम्हें तुम्हारे चक्रधारी की सौगंद हैं।
बस फिर क्या था गोरा ने चन्दा की ही तरह रूपा के साथ भी वर्ताव प्रारम्भ किया जिसे चन्दा न सह सकी और एक रात गोरा के पास रूपा को भेजा ही दिया गोरा ने नींद में रूपा का हाथ स्पर्श किया जागा और प्रण तोड़ने वाले हाथों को ही काट डाला।
फिर तो गरीबी ने घर में घर किया, तकाज़े पर तकाज़े होने लगे मुखिया के अतः चन्दा एक दिन अपनी बची पूंजी देने गई, मुखिया ने बलात्कार करना चाहा, चन्दा ने उसका सर तोड़ दिया।
मुखिया की क्रोधग्नि भड़वी-उसने गोरा के घर का सामान लीलाम कराया-पर एक अजनबी कुंभार ने खरीदकर गोरा को ऋणमुक्त कर दिया।
कुंभार का नाम था कन्हैया, उसकी पत्नी का नाम लखमी-पर वे कौन थे-ये गोरा न जान सका और जब जाना तब कन्हैया पास नहीं था।
कौन का वह कन्हैया? आया कहाँ से और गया कहाँ? किस लिये? ये तो गोरा ही बता सकता है या उसका चक्रधारी।