सुचित्रा सेन एक अभिनेत्री का नहीं भारतीय फिल्म जगत की एक महत्वपूर्ण घटना का नाम है। बंगला सिनेमा के तो पूरे युग का वह प्रतिनिधित्व करती हैं। हिन्दी में वह बिमल राय की ’देवदास’ (1955), ऋषिदा के निर्देशन में बनी ’मुसाफिर’ (1957), एस. मुखर्जी कृत ’सरहद’ (1960), राज खोसला द्वारा निर्देशित ’बम्बई का बाबू’ (1960), असित सेन की ’ममता' (1966), गुलजार की ’आंधी’ (1975) जैसी चन्द फिल्मो में ही दिखाई दी। लेकिन कहना गलत न होगा कि सुचित्रा सेन इन गिनी-चुनी फिल्मों में अपने यादगार अभिनय के कारण देखते-देखते उस उच्च सिंहासन पर विराजमान हो गई जहां पहुंचने के लिए मीना कुमारी, वहीदा रहमान, नूतन और गीता बाली, जैसी समर्थ अभिनेत्रियों को कई साल लगे।
Suchitra Sen and Dilip Kumar from the film 'Devdas' (1955). An image from the original article.
सुचित्रा की सबसे बड़ी धरोहर थी उसका ’अपूर्व सौन्दर्य’। उनके जैसा फोटोजनिक चेहरा भारतीय फिल्म जगत की शयद ही किसी अभिनेत्री को नसीब हुआ हो। कैमरे के हर कोण से वे सुन्दर लगती थीं। शायद यही वजह रही होगी कि उनकी फिल्मों में उनके चेहरे के ’क्लोज अप’ को बहुत महत्व दिया गया।
सुचित्रा की सबसे बड़ी धरोहर थी उसका ’अपूर्व सौन्दर्य’। उनके जैसा फोटोजनिक चेहरा भारतीय फिल्म जगत की शयद ही किसी अभिनेत्री को नसीब हुआ हो। कैमरे के हर कोण से वे सुन्दर लगती थीं। शायद यही वजह रही होगी कि उनकी फिल्मों में उनके चेहरे के ’क्लोज अप’ को बहुत महत्व दिया गया। सिर्फ पर्दे पर ही नहीं उनके क्लोजअप का पोस्टर पर भी खूब इस्तेमाल किया जाता था। ’देवदास’ और ’मुसाफिर’ में दिलीप कुमार, ’बम्बई का बाबू’ और ’सरहद’ में देवानन्द, ’ममता’ में अशोक कुमार और ’आंधी’ में संजीव कुमार जैसे अभिनेताओं की मौजूदगी के बावजूद इन फिल्मों के पोस्टरों पर सुचित्रा के ’क्लोजअप’ का जिस विशेष सम्मोहन शक्ति के रूप में इस्तेमाल किया गया था उसके जादू से भला कौन वाकिफ नहीं।
An image of film booklet of 'Musafir' (1957) from Cinemaazi archive.
फिर सुचित्रा केवल ’अपरिभाष्य सौन्दर्य’ की स्वामिनी मात्र नहीं बल्कि अभिनय कला की गहनतम अनुभूतियों को पूरी शिद्दत के साथ उजागर करने वाली एक बेमिसाल अदाकारा थीं। आंखों का वह जिस प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करती, उससे कई बार तपे हुए कलाकार तक डगमगा जाते थे। खुद बिमल राय ने एक बार कहा था ’उनकी आंखों की ताकत के सामने दिलीप कुमार तक विचलित हो जाते थे। अशोक कुमार और देवानन्द सरीखे अभिनेताओं ने भी उनकी अप्रतिम अभिनय क्षमता को स्वीकारा। संजीव कुमार ने तो एक साक्षात्कार में यहां तक कहा था कि ’मेरी अभिनय यात्रा के सबसे सुखद और यादगार क्षण तो वे हैं जिनमें मैंने सुचित्रा सेन जैसी अभिनेत्री को प्रत्यक्ष अभिनय करते हुए देखा। क्या गजब की अदाकारा हैं वे। इसी तरह धर्मेन्द्र ने एक बार अपने कैरियर के एकदम शुरूआती दिनों की फिल्म ’ममता’ का जिक्र चलने पर एक साक्षात्कार में कहा था ’यह फिल्म तो दरअसल अशोक कुमार और खासकर सेन के लाजवाब अभिनय के कारण याद की जाएगी। मुझे अच्छी तरह याद है कि इस फिल्म के दो तीन दृश्यों में दादा मुनि जैसे पुराने और मंजे हुए अभिनेता तक सुचित्रा जी के भावप्रवण अभिनय और संवाद अदायगी के सामने डिगते नजर आए थे। सच पूछिए तो मेरे अभिनय यात्रा की पहली पाठशाला तो सुचित्रा जी ही हैं।’
फिर सुचित्रा केवल ’अपरिभाष्य सौन्दर्य’ की स्वामिनी मात्र नहीं बल्कि अभिनय कला की गहनतम अनुभूतियों को पूरी शिद्दत के साथ उजागर करने वाली एक बेमिसाल अदाकारा थीं। आंखों का वह जिस प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करती, उससे कई बार तपे हुए कलाकार तक डगमगा जाते थे।
An image of film booklet of 'Sarhad' (1960) from Cinemaazi archive.
सुचित्रा के कलापूर्ण जीवन का प्रसंग हो और उत्तम कुमार की याद न आए यह संभव नहीं। सुचित्रा और उत्तम की जोड़ी बंगला फिल्मों के इतिहास का एक अलग अध्याय है। इस जोड़ी ने तीन दर्जन से भी अधिक फिल्मों में काम किया और शायद ही तीन-चार फिल्में व्यावसायिक रूप से विफल रही हो। एक दौर ऐसा भी था जब सुचित्रा को नायिका के रूप में साइन करने के बाद निर्माता सीधे उत्तम कुमार के पास चले जाते थे। शायद इसकी वजह यह थी कि सुचित्रा जैसी क्लासिक दर्जे की अभिनेत्री के सामने बंगला फिल्मों के सुपरस्टार उत्तम कुमार ही फिल्म के सन्तुलन को ठीक बैठा पाने में सक्षम थे। इस जोड़ी की सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि ढेर सारी फिल्मों में एक साथ होने के बावजूद भी फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं में सुचित्रा-उत्तम को लेकर कभी रोमांस की गरमागर्म खबर नहीं छपी। इनका सारा सम्बन्ध काम तक ही सीमित रहा। इसका मुख्य कारण एक तो सुचित्रा का अपनी फिल्मी रोमांटिक इमेज से एकदम अलग-थलग एकाकी और आत्म केन्द्रित व्यक्तित्व था और दूसरा था सुप्रिया देवी के साथ उत्तम कुमार का आत्मीय रिश्ता, जिसके कारण वे सुचित्रा के सम्मोहन में नहीं बंधे। हालांकि उत्तम कुमार अपने साक्षत्कारों में सुचित्रा की चर्चा छिड़ने पर अक्सर मीठी चुटकी लेते हुए कहा करते कि ’अफसोस इस बात का कि सुचित्रा सिर्फ मेरी फिल्मी प्रेमिका और पत्नी ही बनी रही।’
सुचित्रा सेन को फिल्म उद्योग छोड़े कोई 15 साल से भी अधिक होने को जाए पर कलकत्ता के टालीगंज क्षेत्र की हवाएं आज भी उनके अपरिभाष्य सौन्दर्य के गीत गाती हैं। उस अलौकिक सौन्दर्य के बारे में कुछ और लिखना शब्द क्रीड़ाएं होगी। अमूर्त को भाषा देने की एक तयशुदा असफलता होगी।
An image of film booklet of 'Bambai ka Babu' (1960) from Cinemaazi archive.
दूरदर्शन पर प्रसारित उनकी ’प्रणय पास’, ’अग्निपरीक्षा’, ’देवी चौधरानी’, ’सात पाके बांधा’ और ’सप्तपदी’ जैसी कई बंगला फिल्मों को देखने और उनके अभिनय को समझने में भाषा की अनभिज्ञता कभी आड़े नहीं आई। साथ ही यह महसूस करने में भी देर नहीं लगी कि क्यों उनकी प्रतिमा और ख्याति सत्यजित रे और ऋत्विक घटक जैसे महामंडित बंगला फिल्मकारों की छत्रछाया की मोहताज नहीं रही। काश हिन्दी सिनेमा को सुचित्रा सेन की कुछ फिल्में और मिली होतीं ताकि हिन्दी रजतपट पर उनके सम्मोहनकारी ’क्लाजअप’ से लिपटी कुछ यादें और जुड़ पाती।
सुचित्रा सेन को फिल्म उद्योग छोड़े कोई 15 साल से भी अधिक होने को जाए पर कलकत्ता के टालीगंज क्षेत्र की हवाएं आज भी उनके अपरिभाष्य सौन्दर्य के गीत गाती हैं। उस अलौकिक सौन्दर्य के बारे में कुछ और लिखना शब्द क्रीड़ाएं होगी। अमूर्त को भाषा देने की एक तयशुदा असफलता होगी।
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Part of Krishna Kumar Sharma's K K Talkies Series.