12 Jul, 2022 | Archival Reproductions by Cinemaazi
Image from Lobby Card of the film 'Jangal Mein Mangal' (1972)
प्राण और अशोक कुमार दो अच्छे कलाकार भी हैं और अच्छे दोस्त भी। लेकिन दाढ़ी के मामले में दोनों एकदम विपरित है। अशोक कुमार को दाढ़ी लगाने से जितनी चिढ़ है, प्राण को दाढ़ियों से उतना ही प्यार है। इसलिए अभिनेता प्राण ने अनेक फिल्मों में दाढ़ी लगा कर न जाने कितने चरित्रों को परदे पर नया जन्म दिया है। कभी उन्होंने किसी फकीर की दाढ़ी अपने किरदार के लिए इस्तेमाल की है, तो कभी किसी राष्ट्रपति की। कभी किसी पठान की दाढ़ी से अपने चरित्र को सेल्यूलाइड पर सजीव किया है तो कभी किसी समाधि में लीन महात्मा की दाढ़ी से, प्राण के इन चरित्रों की दाढ़ी की दिलचस्प कहानियां किसी भी रूप में अरेबियन नाइट्स की कहानियों से कम नहीं है।
फिल्म ’बुनियाद’ में प्राण की भूमिका एक जज की थी। जब उन्हें इस फिल्म की पूरी भूमिका सुना दी गयी तो उन्होंने अपने सेक्रेट्री को अमेरिकन एंबेसी भेजा और अब्राहम लिंकन की तसवीरें मंगवायीं। लिंकन की दाढ़ी में एक विशेष बात यह थी कि उसके साथ मूँछे नहीं थी। प्राण को यह बात जंच गयी और उन्होंने ’बुनियाद’ के लिए लिंकन की दाढ़ी जज के चरित्र को प्रदान कर दी। शूटिंग पर पहले दिन जब मेक अप मैन ने प्राण का मेक अप किया तो वह मूँछे ढूंढने लगा। काफी परेशान होने के बाद भी जब उसे मूँछे नहीं मिली तो उसने दाढ़ी लगा कर डरते डरते कहा कि मूँछे नहीं मिल रही हैं। यह बात जब निर्माता के कान में पड़ी तो वह घबरा गया कि अब शूटिंग कैसे होगी? तुरंत कई तरह की मूँछे मंगवायी गयी, किंतु जब प्राण ने बताया कि उस दाढ़ी के साथ मूँछों की जरूरत ही नहीं है, तब यूनिट की जान में जान आयी।
Image from the photographic stills of the film 'Buniyaad' (1972)
’बुनियाद’ में अभिनेता प्राण के इस चरित्र को दर्शकों ने काफी पसंद किया था, इसीलिए प्राण ने बिना मूँछोंवाली दाढ़ियों को ’अमर अकबर एंथोनी’ और ’खुदा गवाह’ फिल्मों में भी प्रयोग किया।
प्राण के संबंध में यह बात भी सभी जानते हैं कि वे अतिथि कलाकार के रूप में कभी काम नहीं करते। किंतु दारा सिंह की फिल्म में प्राण ने उस रूप में काम किया था। फिल्म का नाम ’नानक दुखिया सब संसार’ था और इसमें प्राण की भूमिका सिखों के एक गुरु की थी। अभिनेता प्राण ने इस भूमिका के लिए एक वास्तविक सिख गुरु की दाढ़ी लगायी थी। यह दाढ़ी प्राण को सिखों की अनेक ऐतिहासिक पुस्तकें खंगालने के बाद हाथ लगी थी।
फिल्म ’चक्कर पे चक्कर’ में एक दृश्य के लिए प्राण को एक बड़ी उम्र के साथ की भूमिका करनी थी। काफी सोच विचार और मेहनत के बाद एक दिन प्राण को उस महात्मा का चेहरा याद आया जो कभी उन्हें हरिद्वार में मिला था। इस महात्मा ने जंगल में अस्सी वर्ष से समाधि लगा रखी थी और इसकी उम्र डेढ़ सौ वर्ष बतायी जाती थी। उसकी दाढ़ी-मूँछें व सिर के बाल सन की तरह सफेद थे। मूँछें लंबाई के कारण सीने को छू रही थी। प्राण ने ’चक्कर पे चक्कर’ के लिए इन बाबा की मूँछे उधार ले ली और दाढ़ी मामूली सी रखी। ऐसा करने से वह चरित्र फिल्म का एक आकर्षण बन गया।
Image from the photographic stills of the film 'Chakkar Pe Chakkar' (1977)
सारंगीवाले की दाढ़ी
’नन्हा फरिश्ता’ में प्राण का चरित्र एक ऐसे व्यक्ति का था जो हाथ में किताब पकड़ने पर प्रोफेसर महसूस होता था, लेकिन छुरा थाम लेने पर डाकू लगता था। इस चरित्र में दो रंग थे। इसीलिए प्राण ने इस चरित्र को प्ले करते समय एक प्रोफेसर की दाढ़ी इस्तेमाल की थी। यह दाढ़ी उन्हें एक प्रोफेसर को देख कर लगाने की सूझी थी। प्रोफेसर साहब की इस दाढ़ी को फिल्म ’नन्हा फरिश्ता’ के बाद प्राण ने ’जंगल में मंगल’ के लिए भी इस्तेमाल किया।
Image from the photographic stills of the film 'Nanha Farishta' (1969)
एक बार एक दोस्त के घर पर पार्टी आयेाजन की गयी। मदिरा पान के साथ जश्ने कव्वाली का आयोजन भी था। कव्वाली शुरू हुई तो प्राण की आंखे कव्वालों के बजाय सारंगी बजानेवाले पर टिकी रही। उसकी दाढ़ी खिचड़ी थी और मूँछें एकदम नोकदार। सारंगी बजाने के साथ वह कोरस में गा भी रहा था। जब फिल्म ’धर्मा’ के लिए अभिनेता प्राण को बिंदू के साथ कव्वाली प्रतियोगिता का दृश्य अभिनीत करना था तो उन्होंने उसी 'सारंगीवाले' की दाढ़ी मूँछ लगा कर चरित्र को वास्तविक रूप में परिवर्तित कर दिया था।
’जंजीर’ के पठान शेर ख़ान को कौन भूल सकता है। इस पात्र के लिए प्राण ने कश्मीर के एक मुल्तानी पठान की दाढ़ी और बाल इस्तेमाल किये थे। इस पठान से प्राण की मुलाकात कश्मीर में ही हुई थी। वह आंखों में काजल लगाता था और सिर के बालों के बीच से मांग निकालता था। उसकी दाढ़ी के बाल लाल और सिर के बाल काले थे। ’जंजीर’ के लिए अभिनेता प्राण ने जब शेर ख़ान का पात्र प्रस्तुत किया तो इसी पठान की लाल दाढ़ी और काले बालों का सहारा लिया।
Image from the cover of the official press booklet of the film 'Zanjeer' (1973)
’जंरीर’ के पठान की तरह दर्शकों के दिल व दिमाग में ’उपकार’ के मलंग की यादें आज भी ताजा है। प्राण ने ’उपकार’ के इस पलंग की दाढ़ी एक पुरानी फिल्म ’अमर ज्योति ’ के पात्र से ली थी। वी. शांताराम की इस फिल्म में चंद्रमोहन ने एक लंगड़े की भूमिका अभिनीत की थी। सिर्फ बैसाखियों को छोड़ कर ’उपकार’ का चरित्र ’अमर ज्योति’ के पात्र में से अभिनेता प्राण ने तलाश किया था। मगंल का यह चरित्र वास्तव में इस कदर सजीव था कि दर्शकों ने ’उपकार’ की इस बेजोड़ भूमिका के बाद प्राण को खलनायक से चरित्र कलाकार के रूप में स्वीकार कर लिया। अपनी एक नयी फिल्म ’गोरा’ में प्राण एक बार फिर मलंग की दाढ़ी, मूँछों के साथ दिखाई देंगे। यद्यपि यह मलंग ’उपकार’ के मलंग में एकदम भिन्न है।
Image from the photographic stills of the film 'Upkar' (1967)
चचा जान की याद में
लाहौर (पाकिस्तान) के जिस मोहल्ले में प्राण रहते थे उसी मोहल्ले में एक बड़े मियां भी रहते थे। बेहद शरीफ और नेक इंसान थे। प्राण उन्हें चचा जान कहते थे। पार्टीशन के दंगों में चचा जान शहीद हो गये। पिछले दिनों फिल्म ’करिश्मा ’ के लिए प्राण ने अपनी भूमिका सुनी तो उन्होंने इस चचा जान का चेहरा याद आने लगा। ’करिश्मा’ के लिए प्राण अपने इस प्रिय चचा की दाढ़ी मूँछों के साथ इनकी यादें भी हमेशा के लिए ताजा कर रहे हैं।
राजपूती शान की दाढ़ी
प्राण की दाढ़ियों की इन दिलचस्प घटनाओं में एक मनोरंजक घटना फिल्म ’चोर हो तो ऐसा’ की भी है। इस फिल्म के लिए काफी दिनों तक प्राण को कोई दाढ़ी नजर नहीं आयी। इसी बीच एक दोस्त ने उन्हें कुछ ऐतिहासिक पुस्तकें पढ़ने को दीं। एक पुस्तक में राजपूत राजाओं की कहानियां थी। कहानियों के साथ तस्वीरें भी थीं। एक राजपूत की दाढ़ी देखते ही प्राण को लगा यही दाढ़ी बाकी बची है। ’चोर हो तो ऐसा’ में उन्होंने इसी राजपूती दाढ़ी को अपने चरित्र में उपयोग किया।
नयी नयी दाढ़ियों की तलाश प्राण को आज भी रहती है। क्योंकि प्राण के दृष्टिकोण से दाढ़ी चेहरे का वह आवश्यक भाग है जो किसी भी इंसान के व्यक्तित्व की पहचान देता है।
कुछ लोग प्राण की दाढ़ियों की यह कहानी सुन कर यह भी कह सकते हैं कि अभिनेता प्राण के चरित्रों की गाड़ी इन दाढ़ियों से ही चलती है। किंतु यह सच नहीं है। अगर यह सच होता तो आज फिल्मों में हर एक्टर दाढ़ी लगाता और अपनी गाड़ी चलाता।
इसीलिए फिल्म दर्शक आज भी प्राण के संबंध में कहते हैं कि फिल्मों में ’सुपर स्टार’ बहुत से हैं लेकिन 'सुपर एक्टर' एक ही है।
This article is from Madhuri, 12 Jan. 1979 pg. 51.
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