चंद्राणी के ड्राइंगरूम में लता मंगेशकर की एक बड़ी सी तस्वीर लगी है। चंद्राणी फोटो खिंचवाने के लिए उसी मुद्रा में तानपूरा लेकर बैठती है।
मंजिल की जुस्तजूमें
’प्यास नदी’ का एक गीत ओ रे सजनवा क्यों आते हैं सागर में तूफान बहुत लोकप्रिय हुआ था। गायिका की आवाज का कच्चापन कानों को बड़ा भला भी लगा था। लेकिन यह फिल्म असफल हो गयी और यह आवाज भी कुछ समय के लिए गुम हो गयी। यही हाल फिल्म ’कांच और हीरा’ के गीत नजर आती नहीं मंजिल का हुआ। ये दोनों ही फिल्में ठीक ढंग से जनता के सामने नहीं आयी। साथ ही असफल फिल्मों क कारण गायिका को गीतों की लोकप्रियता को कोई लाभ नहीं मिला।
शुरूआत पूजा गीत से
चंद्राणी ने बारह वर्ष की अवस्था से ही गीत गाने शुरू कर दिये थे। ’बंगाल की बुलबुल का खिताब भी उन्हें मिल गया था। पूजा गीत के बाद, वसंत देसाई ने एक भजन के लिए उन्हें बुलाया और फिर मदन मोहन ने साहब बहादुर में ’ये वादियां दिलनशी’ गवा कर उन्हें मौका दिया। साहब बहादुर फिल्म का हाल तो सबको मालूम है पर चंद्राणी तभी से, पिछले सात वर्षों से बंबंई में हैं और आज हर बड़े छोटे संगीतकार के साथ गा चुकी है।
मदन मोहन से बप्पी तक की संगीत यात्रा के बावजूद चंद्राणी को वह जगह आज भी नहीं मिली जिसकी वे उम्मीदवार है। इसका कारण उन्हीं शब्दों में, ’’यहां इतनी राजनीति है कि धीरे, धीरे ही आगे बढ़ा जा सकता है। फिर मेरी किसी से प्रतियोगिता नहीं है, मैं सिर्फ चंद्राणी ही के तौर पर जगह बनाना चाहती हूँं’’।
चंद्राणी ने पिछले दिनों रवींद्र जैन के गीत गाने से इनकार कर दिया था। कारण? उनके पिता के अनुसार अच्छे -अच्छे गीत तो वे और दूसरी गायिकाओं से गवाते हैं, बचे खुचों के लिए चंद्राणी को बुलायेंगे तो वह क्यों गायेगी?