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बुलबुल बंगाल की: चंद्राणी मुखर्जी

04 Sep, 2020 | Archival Reproductions by Cinemaazi
An image of Chandrani Mukherji from the original article

चंद्राणी के ड्राइंगरूम में लता मंगेशकर की एक बड़ी सी तस्वीर लगी है। चंद्राणी फोटो खिंचवाने के लिए उसी मुद्रा में तानपूरा लेकर बैठती है।

मंजिल की जुस्तजूमें

’प्यास नदी’ का एक गीत ओ रे सजनवा क्यों आते हैं सागर में तूफान  बहुत लोकप्रिय हुआ था। गायिका की आवाज का कच्चापन कानों को बड़ा भला भी लगा था। लेकिन यह फिल्म असफल हो गयी और यह आवाज भी कुछ समय के लिए गुम हो गयी। यही हाल फिल्म ’कांच और हीरा’ के गीत नजर आती नहीं मंजिल  का हुआ। ये दोनों ही फिल्में ठीक ढंग से जनता के सामने नहीं आयी। साथ ही असफल फिल्मों क कारण गायिका को गीतों की लोकप्रियता को कोई लाभ नहीं मिला।

शुरूआत पूजा गीत से

चंद्राणी ने बारह वर्ष की अवस्था से ही गीत गाने शुरू कर दिये थे। ’बंगाल की बुलबुल  का खिताब भी उन्हें मिल गया था। पूजा गीत के बाद, वसंत देसाई ने एक भजन के लिए उन्हें बुलाया और फिर मदन मोहन ने साहब बहादुर में ’ये वादियां दिलनशी’ गवा कर उन्हें मौका दिया। साहब बहादुर  फिल्म का हाल तो सबको मालूम है पर चंद्राणी तभी से, पिछले सात वर्षों से बंबंई में हैं और आज हर बड़े छोटे संगीतकार के साथ गा चुकी है।

मदन मोहन से बप्पी तक की संगीत यात्रा के बावजूद चंद्राणी को वह जगह आज भी नहीं मिली जिसकी वे उम्मीदवार है। इसका कारण उन्हीं शब्दों में, ’’यहां इतनी राजनीति है कि धीरे, धीरे ही आगे बढ़ा जा सकता है। फिर मेरी किसी से प्रतियोगिता नहीं है, मैं सिर्फ चंद्राणी ही के तौर पर जगह बनाना चाहती हूँं’’।

चंद्राणी ने पिछले दिनों रवींद्र जैन के गीत गाने से इनकार कर दिया था। कारण? उनके पिता के अनुसार अच्छे -अच्छे गीत तो वे और दूसरी गायिकाओं से गवाते हैं, बचे खुचों के लिए चंद्राणी को बुलायेंगे तो वह क्यों गायेगी?
 

चंद्राणी दूसरे संगीतकारों से ज्यादा गीत बप्पी के गा रही हैं

चंद्राणी की चुप्पी इस बात की स्वीकृति थी या अस्वीकृति, यह तो नहीं मालूम, लेकिन हर संगीतकार क्या अपनी मर्जी से किसी न किसी गायिका को ज्यादा मौका नहीं देता? चंद्राणी दूसरे संगीतकारों से ज्यादा गीत बप्पी के गा रही हैं।बप्पी नये लोगों को यूं भी मौका देते ही हैं।

चंद्राणी के पिता कहते हैं, ’’बप्पी सिर्फ इसी लिए ज्यादा गीत नहीं गवा पाते, क्योंकि चंद्राणी उनकी रिश्तेदार हैं।दूसरे संगीतकार जितना काम देते हैं बप्पी भी उतना ही देते हैं। वरना लोग कहेंगे कि रिश्तेदारी निभा रहा है।

चंद्राणी साईंबाबा की पूजा में विश्वास करती हैं और वे अकसर शिरडी जाती रहती हैं । खाली समय में किताबें पढ़ना और पेंटिंग करना उनका शोक है। शादी के बारे में सोचती तो वे जरूर है पर इस समय शदी करके अपना कैरियर चौपट करना नहीं चाहती। संगीत क्षेत्र के ही किसी आदमी से वे शादी करना पसंद करेंगी। वैसे इस समय सफेद साड़ी और उम्र से पहले ही परिपक्वता, गंभीरता उन्होंने ओढ़ रखी है।इसका कारण वे खोज नहीं पाती, ’बस शुरू से ही पसंद है’ कहकर बात टाल देती है।

आजकल गुजराती, तमिल, तेलुगु, बंगाली, असमिया सभी भाषाओं में वे गा रही हैं, इन दिनों कुछ ’फास्ट’ गाने उन्होंने गाये हैं हालांकि वे अपनी पसंद गंभीर और भावपूर्ण गीतों तक रखना चाहती हैं।

यदि चंद्राणी अपनी आवाज में वे भावनाएं उंडेल सकें, जिस भावना के वे गीत गा रही हैं तो आवाज के उतार चढ़ाव के साथ साथ गीत जीवंत हो उठें और चंद्राणी को वह जगह मिल जाये जिसकी उन्हें कामना है।

This is a reproduced article from Madhuri magazine on 6 April 1979. 
 

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