28 Aug, 2020 | Archival Reproductions by Cinemaazi
Azim Bhai. Image Courtesy: Madhuri, 19 March 1971
फिल्मों की ढिशुंग-ढिशुंग को कोई चाहे कितना ही बदनाम क्यों न करे, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि दर्शकों का एक वर्ग उससे विशेष तप्त होता है। बिना मारपीट की फिल्म में उन्हें कुछ मजा नहीं आता।
इस फिल्मी मारपीट का अपना एक स्टाइल होता है। घूंसे, मुक्के, लात, लाठी सब कुछ चलता है। लगता नहीं कुछ नहीं, पर फिर भी सामने वाला चित हो जाता है।
मारपीट के इस आर्ट के एक मशहूर मास्टर हैं- अजीम भाई। यूं उनसे मिलिये-एकदम विनीत और नम्र है। इकहरा शरीर, लंबा कद, लेकिन जब वे एक्शन में आ जाते हैं तो बिजली सी फूर्ती है उनमें। अपने से लंबे तगड़े दुश्मन को खाली हाथ कैसे चित करना है, यह उन्हें खूब मालूम है। लाठी, भाला, चाकू, तलवार, राइफल सभी चीजें चलाना उन्हें आता है। तैराकी और घुड़सवारी में भी निपुण है।
फिल्म जगत में अजीम भाई सन् 1935 से है। इसके पहले दस साल वे निजाम की फौज में कैवेलरीज में थे। इसी समय उन्होंने यह सारी कला सीखी थी। फिल्मों में आये तो अभिनय का काम भी मिलने लगा। इसलिए वे शुरू से ही फाइट कंपोजर और अभिनेता दोनों ही रहे हैं। 'अल्लाउद्दीन को जादुई चिराग' में उन्होंने मीनाकुमारी के साथ सह नायक की भूमिका की थी।
तो वह मौन न होती.......
फिल्मों में इतना अरसा हो जाने की वजह से अजीम भाई, छोटे से लेकर बड़े तक, अनेक कलाकारों के मारपीट गुरू रह चुके हैं। सुप्रसिद्ध अभिनेता स्वर्गीय श्याम को भी उन्होंने घुड़सवारी सिखायी थी और उनके डबल का काम भी अजीम भाई ही करते थे। फिल्म 'शबिस्तान' की शूटिंग के दौरान हुई उस घटना को अजीम भाई बड़े दुःख के साथ याद करते हैं, जब उन्हें फाइटिंग के दौरान चोट आ गयी थी। इस चोट की वजह से अजीम भाई को बिस्तर पकड़ना पड़ा था और अभिनेता श्याम स्वयं ही घोड़े पर चढ़ कर शाट देने चले गये थे। शाट जरा मुश्किल भी था। थोड़ा बिगड़ गया और उस घोड़े से गिर गर ही श्याम की मृत्यु हो गयी। "श्याम की मौत मेरी चोट बन कर आयी थी," अजीम र्भा अकसर यही कहा करते हैं।
A poster of Gunga Jumna from Cinemaazi archive
श्याम के बाद के अनेक नामी हीरो भी उनसे फाइट सीख चुके हैं। अजीम भाई बहुत नम्र है, उनकी बात से गर्व नहीं, हाँ संतोष जरूर झलकता है, जब वे कहते है कि आज के लगभग हर बड़े कलाकार को वे मारपीट में तब ट्रेंड कर चुके हैं जब वे नये-नये आये थे। आज भ्ज्ञी नयं कलाकार उनसे शिक्षा लेते हैं। नरगिस ने जब फिल्म कैरियर शुरू किया था, अजीम भाई ने उन्हें घुड़सवारी सिखायी थी और आज जब राज कपूर के पुत्र रणधीर राज फिल्म अभिनय क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। अजीम भाई उनको तलवारबाजी सिखाने के लिए नियुक्त किये गये हैं। 'गंगा जमना' का शानदार रेल डकैती सीन अजीम भाई का ही डायरेक्ट किया हुआ था। 'मदर इंडिया', 'कोहिनूर', 'छलिया', 'जिस देश में गंगा बहती है’, 'महाभारत', 'हसीना मान जायेगी' उन दर्जनों फिल्मों में से कुछ नाम ळैं जिनमें अजीम भाई मारपीट का निर्देशन कर चुके हैं।
उन्होंने सिर्फ मारपीट का ही निर्देशन किया हो यह बात नहीं। छोटे बजट की वे फिल्में जो एक खास दर्शक वर्ग की पसंद आती है, अजीम भाई ने बहुत खूबी के साथ निर्देशित की है। 'पहाड़ी नागन’, 'मुकाबला’, ’सी.आई.डी. एजेंट 302’ ’मुहबबत और जंग’ आदि इसी तरह की फिल्में हैं। ’फौलादी मुक्का’ नाम की एक फिल्म का उन्होंने निर्माण तथा निर्देशन किया और इन दिनों ’वार्निंग’ नाम की फिल्म बना रहे हैं जिसकी थोड़ी ही शूटिंग शेष्ज्ञ रह गयी है। सुजीनकुमार, संजना, अनवर हुसैन, राममोहन आदि इस फिल्म के कलाकार हैं।
नित मैत से जूझने वाले
अजीम भाई को फिल्म उद्योग से कोई शिकायत नहीं है। वे कहते हैं, "आदमी को मेहनती होना चाहिए और अपना काम पूरी तरह आना चाहिए, बस, फिर यहां पैसा भी है, इज्जत भी"। अपना मेहनताना वे निर्माता की आर्थिक स्थिति के अनुसार, कम भी कर देते हैं काम की गति, कलाकारों की क्षमता के मुताबिक कम या तेज करके शीघ्र काम निपटाने की कोशिश भी करते हैं। स्वयं निर्माता होने के करण वे दूसरों की दिक्कतें समझ कर काम करते हैं और इसीलिए फिल्म उद्योग में विशेष लोकप्रिय भी है।’’अगर दूसरों की तकलीफों का ध्यान रखा जाये तो अपने लिए आराम ही बढ़ता है,’’ वे कहते हैं। उन्होंने अपने पुत्रों को भी फिल्मों में ही लगाया है, अपनी निर्माण संस्था .... फिल्म्स के निर्माण प्रबंधकों के रूप में।
अजीम भाई को इस बात को अफसोस है कि नये-नये लड़के फाइट कंपोजिंग के क्षेत्र में नहीं आ रहे हैं। इसकी वजह उनके ख्याल में आज की आरामतलब दुनिया में शारीरिक परिश्रम के प्रति उदासीनता है, जबकि यह काम गजब की चुस्ती और निरंतर अभ्यास की मांग करता है। अनेक बार शूटिंग के दौरान, मौत से जज्ञ चुकने पर भी वे इस काम से घबरायें नहीं है और आजकल भी अनेक फिल्मों में मारपीट के निर्देशन में व्सस्त है।
The above article is a reproduction from Madhuri, 1971 March 19
The poster used in the article is from Cinemaazi archive and was not part of the original article.